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कंजूस से दानी बनने की प्रेरक कहानी | दान और त्याग की सच्ची कथा

त्याग का महत्व 

एक समय की बात है। एक नगर में  कंजूस व्यक्ति रहता था।

जो अपनी कंजूसी के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध था।  वह खाने, पहनने तक में भी कंजूस था। उसके परिवार वाले हमेशा कहते कि दुनिया में बहुत लोग स्‍वाथी होते हैं, किन्‍तु जिस तरह वह कंजूस था,  शायद ही वैसी कंजूसी  देखने को मिले।उस व्यक्ति के व्यवहार का असर उसके परिवार पर भी पड़ता था।परिवार के बच्चों को अच्छे कपड़े नहीं मिलते। दैनिक आवश्यकताओं को भी वह अनावश्यक खर्च मानकर टाल देता।

एक बार उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई। इसी कटोरी के दुःख में उस ने 3 दिन तक कुछ नही खाया। परिवार के सभी सदस्य उसकी कंजूसी से दुखी थे। परिवार वाले समझाते रहे कि कटोरी की कीमत बहुत अधिक नहीं है।परंतु वह मानने को तैयार नहीं था। उसकी नज़र में वह कटोरी इस दुनिया की सबसे मूल्यवान वस्तु थी।

मोहल्ले में उसकी कोई इज्जत न थी, क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में दान नहीं करता था।लोग उसे अक्सर कहते कि दान करना समाज का कर्तव्य है, परंतु वह इससे बचने के लिए बहाने ढूँढता रहता।

समय बीतता गया और एक बार उस के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ। वेदमंत्रों व् उपनिषदों पर आधारित कथा हो रही थी। कथावाचक एक विद्वान किन्‍तु शांत, गंभीर और अनुभवी व्यक्ति थे, जिनके शब्दों में वि‍शष प्रभाव था।अपने आचरण के अनुसार कंजूस व्यक्ति वहाँ जाने के लिए तैयार नहीं था, परंतु उसे भीतर ही भीतर यह बात सताती थी कि जीवन में खुशी  क्यों नहीं है। ।उस को सद्बुद्धि आई तो वह भी कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुँच गया। 

प्रारंभ में लोगों ने उसकी उपस्थिति को अनदेखा कर दिया। वह सबसे पिछे जाकर बैठ गया। वेद के वैज्ञानिक सिद्धांतों को सुनकर उसको भी रस आने लगा क्योंकि वैदिक सिद्धान्त व्यावहारिक व् वास्तविकता पर आधारित एवं सत्य-असत्य का बोध कराने वाले होते है। कैसे नैतिक कर्तव्य, दान, परमार्थ और सदाचार मनुष्य को श्रेष्ठ बनाते हैं। यही बातें कंजूस के मन को छूने लगीं।

उसका मन अब आध्यात्मिक विचारों से प्रभावित होने लगा था। वह प्रवचन को गहराई से सुनने लगा।कंजूस को और रस आने लगा। उसकी कोई कदर न करता फिर भी वह प्रतिदिन कथा में आने लगा। 

कथा के समाप्त होते ही वह सबसे पहले शंका पूछता। इस तरह उसकी रूचि बढती गई। उसे प्रतीत होने लगाा कि जीवन में  धन जोड़ना मात्र नहीं है, बल्कि सही दिशा में उसे उपयोग करना भी उतना ही आवश्यक है।

वैदिक कथा के अंत में लंगर का आयोजन था इसलिए कथावाचक ने इसकी सूचना दी कि कल लंगर होगा। इसके लिए जो श्रद्धा से कुछ भी लाना चाहे या दान करना चाहे तो कर सकता है।

 नगर के लोगों नें अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी कुछ न कुछ लाए।किसी ने अनाज लाया, किसी ने घी, किसी ने सब्जी, किसी ने दूध—सभी अपनी श्रद्धा के अनुसार दान दे रहे थे।कंजूस के हृदय में भी श्रद्धा पैदा हुई और वह भी एक गठरी बांधा तथा अपने सर पर रख लाया।

जब वह कथा स्‍थल पर पहुचे तो भीड़ बहुुत थी। कंजूस को देखकर उसे कोई भी आगे नहीं बढ़ने देता। इस प्रकार सभी दान देकर यथास्थान बैठ गए। 

अब कंजूस की बारी आई तो सभी लोग उसे देख रहे थे। कंजूस को विद्वान की ओर बढ़ता देख सभी को हंसी आ गई क्योंकि सभी को मालूम था कि यह महाकंजूस है। 

उसकी गठरी को देख लोग तरह-तरह के अनुमान लगाते ओर हँसते, लेकिन कंजूस को इसकी परवाह न थी। 

कंजूस आगे बढ़कर विद्वान को प्रणाम किया। अपने साथ जो गठरी लाया था, उसे उसके चरणों में रखकर खोला ।गठरी में रखा वस्‍तुुओं को  देख कर सभी लोग दंग रह गये।

कंजूस के जीवन की जो भी अमूल्य संपत्ति गहने, जेवर, हीरे-जवाहरात आदि थे उसने सब कुछ को दान कर दिया।

उसके उपरान्‍त उठकर वह यथास्थान जाने लगा तो विद्वान ने कहा, “महाराज! आप वहाँ नहीं, यहाँ बैठिये।”

इस तरह आदर पाते देख कंजूस बोला, “पंडित जी! यह मेरा आदर नहीं है, यह तो मेरे धन का आदर है, अन्यथा मैं तो प्रतिदिन आता था और यही पर बैठता था,पर  तब मुझे कोई नही पूछता था।”

ब्राह्मण बोला, “नहीं, महाराज! यह आपके धन का आदर नहीं है, अपितु आपके महान त्याग का आदर है। 

यह धन तो कुछ देर पहले आपके पास ही था, तब इतना आदर-सम्मान नहीं था जितना कि अब आपके त्याग में है इसलिए आप आज से एक सम्मानित व्यक्ति हुए।

*शिक्षा:-*

मनुष्य को कमाना भी चाहिए और दान भी अवश्य देना चाहिए। इससे उसे समाज में सम्मान तथा परलोक में पुण्य मिलता है ।

त्याग का महत्व 


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