क्या आपने कभी शेर की पीठ पर बकरी को बैठे देखा है? यह सुनकर शायद आपको अजीब लगे, लेकिन जंगल की दुनिया में एक बार ऐसा आश्चर्य हुआ था। लेकिन वहीं दूसरी तरफ, एक चील ने जब भलाई का काम किया, तो उसे इनाम में अपने पंख गवाने पड़े।
आखिर एक ही जैसे 'उपकार' के दो अलग-अलग परिणाम क्यों? आज की यह Sher aur Bakri Ki Kahani सिखयेगी कि हमें उपकार किसकी करनी चाहिए और किसकी नहीं। यह Hindi Moral Story एक उच्च कोटि का Prerak Prasang है, जो आपको गहरे Life Lessons in Hindi सिखाएगी। अगर आप Inspirational Stories और Short Stories in Hindi पढ़ने के शौकीन हैं, तो यह कहानी अंत तक जरूर पढ़ें।
एक समय की बात है जंगल में
शेर और शेरनी शिकार के लिये निकले । शिकार के तलाश में बहुत दूर निकल किंतु शिकार
नही मिल पाया। उधर मांद में अपने बच्चों को अकेला छोडकर आए
थे।
जब देर तक शेर शेरनी नही लौटे तो शावक परेशान होने लगे और भूख से छटपटाने लगे। तथा बार बार मांद से बाहर निकल कर मां की राह देखने लगे।
अचानक उसी समय एक बकरी वहीं से गुजर रही थी । शावको मनोस्थिति और व्याकुलता को बकरी समझ गई। उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती और उछल कूद करने लगे.तथा बकरी के साथ ही खेलने लगे। बच्चों को मस्ती करते देख बकरी को भी आनंद आने लगा।
तभी थके हारे शेर शेरनी वहा
पहुंच आये. बकरी को देख लाल पीले होकर शेर हमला करने ही वाला था
अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी । यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी।
एक दिन यह दृश्य चील ने
देखा । चील ने हैरानी से बकरी को पूछा । बकरी ने पूरी बात चील को
बताई तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।
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| sher bakri chil |
बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपा कर , बच्चों को गर्मी दी जिससे बेहद राहत मिली.चूहे बच्चे स्वस्थ हो गए।
काफी समय बाद चील उडकर जाने
लगी तो हैरान हो उठी। चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे।
बकरी हंसी फिर गंभीरता से
कहा....
''उपकार करो,तो शेरों पर करो,चूहों पर नही।''
क्योंकि कायर कभी उपकार को
याद नही रखते और बहादुर कभी उपकार नही भूलते नही।


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