"जीवन में बड़ी कामयाबी हासिल करने के लिए सिर्फ उत्साह पर्याप्त नहीं होता, बल्कि अनुभव भी उतना ही मायने रखता है? इसे एक बेहतरीन हिंदी नैतिक कहानी (Hindi Moral Story) के माध्यम से समझेंगे।
यह प्रेरक प्रसंग (Prerak Prasang) एक सुलझे हुए व्यापारी की कहानी (Vyapari ki Kahani) है, जो आपको जीवन में अनुभव की सीख (Lesson of Experience) देगी। अक्सर हम जवानी के जोश में बड़ों की सलाह को दरकिनार कर देते हैं, लेकिन यह बूढ़ा और जवान कहानी आपको बताएगी कि सही मार्गदर्शन और धैर्य ही एक असली सफलता की कहानी (Success Story) बनाता है।ये ज्ञानवर्धक कहानियां (Educational Stories) जो आपकी सोच और व्यापार करने का तरीका दोनों बदल देंगी।"
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गोर्वधन नाम का एक पुराना व्यपारी था जो अपनी व्यापारीक समझ के कारण खुुब कमा रहा था | दूर-दूर के गॉव से अनाज लाकर उसे शहर में बेचता औरबहुत सा लाभ कमाता था । वो अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश था | इसलिये उसने सोचा व्यापार को और भी बढ़ाना चाहिये तथा उसने अपने पड़ौसी राज्यों में जाकर व्यापार करने की सोची |
दुसरे राज्य में जाने के रास्ते का मानचित्र देखा गया।मानचित्र के अनुसार रास्ते में एक बहुत बड़ा मरुस्थल हैं | जानकारी के अनुसार उस स्थान पर कई लुटेरे भी हैं | लेकिन बूढा व्यापारी धन कमाने का सपने देख चूका था | उस पर दुसरे राज्य में जाकर धन कमाने की इच्छा प्रबल थी | उसने अपने अन्य कई किसान साथियों को लेकर प्रस्थान करने की ठान ली | बैलगाड़ियाँ तैयार की गई और उस पर बहुत सारा माल ,अनाज लादा गया |
गोर्वधन की टोली में कई लोग थे जिसमे जवान युवक भी थे और वृद्ध अनुभवी लोग,वे लोग बरसो से गोर्वधन के साथ काम कर चुके थे | जवानो के अनुसार यदि टोली का नेत्रत्व कोई नव युवक करता तो अच्छा होता क्योकि वृद्ध गोर्वधन तो धीरे-धीरे जायेगा और पता नही उस मरुस्थल में क्या-क्या देखना पड़ेगा |
इस प्रकार कुछ नौ जवानो ने मिलकर अपनी अलग टोली बना ली। और स्वयम का माल ले जाकर दुसरे राज्य में व्यापार करने की ठानी | गोर्वधन को उसके शुभचिंतको ने इस बात की सुचना दी | गोर्वधन ने कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाई उसने कहा भाई सबको अपना फैसला लेने का अधिकार हैं | अगर वो मेरे इस काम को छोड़ अपना शुरू करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं | यदि और भी जो उनके साथ जाना चाहता हो जा सकता हैं |
अब व्यापारियों की दो टोली बन चुकी थी जिसमे एक का नेत्रत्व वृद्ध गोर्वधन कर रहे थे एवं दुसरे टोली का नेत्रत्व नव युवक गणपत कर रहे थे | दोनों की टोली में वृद्ध एवम नौ जवान दोनों शामिल थे |
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सफ़र शुरू हुआ | गोर्वधन और गणपत अपनी अपनी टोली के साथ माल लेकर चल पड़े | थोड़ी दूर सब साथ –साथ ही चल रहे थे कि जवानो की टोली तेजी से आगे निकल पड़ी और गोर्वधन और उनके साथी पीछे रह गये |गोर्वधन की टोली के नौजवान बिलकुल खुश नहीं थे और बार-बार गोर्वधन को कौस रहे थे।,कहते कि वो नौ जवानो की टोली तो कुछ ही दिनों में मरुस्थल भी पार कर लेगी | और हम सभी इस बूढ़े के कारण भूखे ही मर जायेंगे |
धीरे-धीरे गोर्वधन की टोली नगर की सीमा पार करते हुए मरुस्थल के समीप पहुँच जाती हैं | तब गोर्वधन टोली के सभी सदस्यो से कहते हैं यह मरुस्थल बहुत लंबा हैं और इसमें दूर दूर तक पानी की एक बूंद भी नहीं मिलेगी,इसलिए जितना संभव हो सके पानी भर लो | और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मरुस्थल लुटेरे और डाकुओं से भरा हुआ हैं इसलिये यहाँ का यात्रा बिना रुके करना होगा | साथ ही हमेशा चौकन्ना रहना होगा |
उन्हें मरुस्थल मे प्रवेश से पहले तक बहुत से पानी के गड्ढे मिल जाते हैं जिससे वे पर्याप्त मात्रा में पानी संग्रह कर लेते हैं | तब उन में से एक पूछता हैं कि इस रास्ते में पहले से ही इतने पानी के गड्ढे हैं,हमें एक भी गड्ढा तैयार नहीं करना पड़ा | तब गोर्वधन मूंछो पर ताव देकर बोलते हैं इसलिए तो मैंने नव जवानों की उस टोली को आगे जाने दिया | यह सभी उन लोगो ने खुद के लिए तैयार किया होगा जिसका लाभ हम सभी को मिल रहा हैं | यह सुनकर कर टोली के अन्य साथी, गोर्वधन के अनुभव की प्रशंसा करने लगते हैं | सभी गोर्वधन के कहे अनुसार व्यवस्था करके और आगे बढ़ते हैं |
आगे बढ़ते हुए गोर्वधन सभी को सावधन कर देता हैं कि अब हम सभी मरुस्थल में प्रवेश करने वाले हैं | जहाँ ना तो पानी मिलेगा, ना खाने को फल ।रास्ता बहुत लम्बा है और ना ही ठहरने का स्थान भी हैं | हमें कई दिन भी लग सकते हैं | सभी गोर्वधन की बात में हामी मिलाते हुए उसके पीछे हो लेते हैं |
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अब वे सभी मरुस्थल में प्रवेश कर चुके थे | जहाँ बहुत ज्यादा गर्मी थी |आगे चलने पर उन्हें सामने से कुछ लोग आते दिखाई देते हैं | वे सभी गोर्वधन का अभिवादन करके हाल चाल पूछते हैं | उन में से एक कहता हैं आप सभी व्यापारी लगते हो, ऐसा प्रतीत होता है बहुत दूर से चले आ रहे हो, हम सभी सेवा करने के लिए तत्पर हैं | उसकी बाते सुन गोर्वधन हाथ जोड़कर कह देता हैं कि भाई हम सभी ठीक ठाक हैं, तुम्हारा धन्यवाद जो तुम सभी ने हमारे लिए इतना सोचा | और वे अपने साथियों को लेकर आगे बढ़ जाते हैं | आगे बढ़ते ही टोली के कुछ नव युवक फिर से गोर्वधन को कौसने लगे कि जब वे लोग हमारी सहायता कर रहे थे तो इस बुढे गोर्वधन को क्या परेशानी हैं ?
कुछ दूर चलने के बाद फिर से कुछ लोग सामने से आते दिखाई देते हैं जो भीगे हुए थे और वे गोर्वधन और उसके साथियों को कहते हैं कि आप सभी राहगीर लगते हो और सफर से थके लग रहे हो | यदि आप चाहो तो हम आप सभी को पास के एक जंगल में ले चलते हैं | जहाँ बहुत पानी और खाने को फल भी हैं | साथ ही अभी वहाँ पर तेज बारिश भी हो रही हैं | उसी में हम सभी भीग गये थे | चाहे तो अपना सारा पानी फेक कर जंगल से ताजा पानी भर ले और पेट भर खाकर आराम कर ले | लेकिन गोर्वधन मना करके अपने साथियों से जल्दी चलने को कह देते हैं !
इस बात पर टोली के कई नौ जवानो को गोर्वधन पर बहुत गुस्सा आता हैं और वे उसके नजदीक आकर अपना सारा गुस्सा निकाल देते हैं। पूछते हैं कि क्यूँ वे उन भले लोगो की बात नहीं सुन रहे और क्यूँ हम सभी पर अत्याचार करने में लगे हो | तब गोर्वधन मुस्कुराते हुए कहते हैं कि वे सभी लुटेरे हैं और हमसे अपना पानी फिकवा कर हमें असहाय करके लुट लेना चाहते हैं और हमें यही मरने के लिये छोड़ देना चाहते हैं | तब वे नव युवक गुस्से में पुछता हैं कि तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता हैं ? तब गोर्वधन कहते हैं कि तुम स्वयं देखो, इस मरुस्थल में कितनी गर्मी हैं, क्या यहाँ आसपास कोई जंगल हो भी सकता हैं ,यहाँ की भूमि इतनी सुखी हैं कि दूर दूर तक बारिश ना होने का संकेत देती हैं | फल फुल कैसे हो सकते हैं | और जरा निगाह उठाकर ऊपर देखो दूर-दूर तक कोई बारिश के बादल नहीं हैं, ना ही हवा में बारिश की ठंडक हैं, ना ही गीली मिटटी की खुशबु,तो कैसे उन लोगो की बातों पर विश्वास किया जा सकता हैं ? मेरी बात मानो कुछ भी हो जाये अपना पानी मत फेंकना और ना ही कहीं भी रुकना |
कुछ आगे चलने पर उन्हें रास्ते में कई नरकंकाल और टूटी फूटी बैलगाड़ीयॉं मिलती हैं | वे सभी कंकाल गणपत की टोली के लोगो के थे | उन में से सभी मर चुका था | ऐसी अवस्था देखकर सभी रोने लगते हैं क्यूंकि वे सभी उन्ही के साथी थे | तब गोर्वधन कहता हैं कि अवश्य ही इन लोगो ने इन लुटेरो को अपना साथी समझा होगा और इसका परिणाम यह हुआ, आज उन सब को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा |गोर्वधन सभी को हिम्मत रखने को कहते हैं हम सभी को भी यहाँ से शीघ्र निकलना होगा।क्यूंकि वे लुटेरे अभी भी हमारे पीछे हैं | ईश्वर से प्रार्थना करो कि हम सभी सकुशल यहाँ से निकल जाये |
निष्कर्ष
अनुभव उम्र बीतने और जीवन जीने के बाद ही मिलता हैं | अनुभव कभी भी पूर्वजो की विरासत में नहीं मिलता | जैसे इस कहानी में नव जवानो में जोश तो बहुत था लेकिन अनुभव की कमी थी ।जो कि|गोर्वधन के पास थी जिसका उसने सही समय पर इस्तेमाल किया और विपत्ति से सभी को निकाल कर ले गया |शिक्षा यही हैं कि किसी काम को करने के लिये जोश के साथ अनुभव होना भी अत्यंत आवश्यक हैं |
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